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Micah
Micah 7.1
1.
हाय मुझ पर ! क्योंकि मैं उस जल के समान हो गया हूं जो धूपकाल के फल तोड़ने पर, वा रही हुठ दाख बीनने के समय के अन्त में आ जाए, मुझे तो पक्की अंजीरों की लालसा थी, परन्तु खाने के लिये कोई गुच्छा नही रहा।