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Romans 16.2
2.
कि तुम जैसा कि पवित्रा लोगों को चाहिए, उसे प्रभु में ग्रहण करो; और जिस किसी बात में उस को तुम से प्रयोजन हो, उस की सहायता करो; क्योंकि वह भी बहुतों की बरन मेरी भी उपकारिणी हुई है।।